बुजुर्ग बोले लॉकडाउन के लिए तैयार नहीं थे लेकिन अब इसके साथ जीना सीख लिया

बीते चार महीने से पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कारण अलग-अलग समयावधि में लॉकडाउन के दायरे में अपनी जिंदगी जीने का प्रयास कर रही है। भारत में भी लॉकडाउन के 50 दिन पूरे हो चुके हैं, वहीं लॉकडाउन 4.0 के रूप में अगले चरण की भी तैयारी हो रही है। इस दौरान नोवेल कोरोना वायरस से सबसे अधिक प्रभावित 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग ही थे। लॉकडाउन के चलते घर में रहने वाले बुजुर्गों पर इसका मानसिक और शारीरिक रूप से गहरा असर पड़ा है। खासकर सुबह की सैर, दोस्तों से मिलना-जुलना, सामाजिक मेल-मिलाप और अन्य गतिविधियां लगभग ठप हो गईं। क्रॉनिकल डिजीज से जूझ रहे बुजुर्गों को तो सेल्फ आइसोलेशन और क्वारंटीन रहने के लिए भी कहा गया था, ऐसे में वे घर में रहते हुए भी अपने घरवालों से दूर रहे। परिवार में अलग-थलग पड़ जाने से उनके अकेलेपन को कोरोना और लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया। दरअसल जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो बुजुर्ग इसके लिए तैयार नहीं थे। भले ही स्वास्थ्य और इस महामारी की गंभीरता को देखते हुए यह एक अत्यावश्यक कदम था लेकिन अचानक लगे इस लॉकडाउन ने उन्हें पूर्व तैयारी का मौका ही नहीं दिया। ऐसे में पत्रिका ने अपने वरिष्ठ पाठकों से ही उनके दिल का हाल जानने का प्रयास किया कि वे इस कठिन समय में घर के सबसे अनुभवी वटवृक्ष होने के नाते खुद को कैसे सींच रहे हैं-

बुजुर्ग बोले लॉकडाउन के लिए तैयार नहीं थे लेकिन अब इसके साथ जीना सीख लिया

बुजुर्गों ने खुलकर रखी अपनी बात
पत्रिका के सर्वे में 50साल से अधिक आयु वाले बुजुर्ग महिला एवं पुरुष शामिल थे। पत्रिका सर्वे में पूछे गए सवालों के लिए उनका उत्साह ही बता रहा था कि उनके पास बताने को बहुत कुछ था। सभी ने अपने दिल की बातों का पिटारा खोला तो सामने आया कि कैसे ढलती उम्र में भी हर परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालने की कला इन बुजुर्गों को आती है। सर्वे में यूं तो महिलाओं ने भी अपने मन की बात कही लेकिन पुरुषों ने सवालों के जवाब देने में ज्यादा उत्साह दिखाया। सर्वे में करीब 14 फीसदी बुजुर्ग महिलाओं की तुलना में 86 फीसदी पुरुषों ने सवालों के जवाब दिए। सर्वे में भाग लेने वाले बजुर्गुों की औसत आयु 54 वर्ष थी।

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सुबह की सैर, दोस्तों की खैर, कर रहे मिस
बुढ़ापे में दोस्तों से बड़ी संजीवनी और कोई नहीं। अकेलेपन से बचना हो या सलाह-मशविरा करना हो दोस्तों के आगे दिल खोलकर अपनी बात कहने वाले ये बुजुर्ग लॉकडाउन में सबसे ज्यादा उन्हीं को मिस कर रहे हैं। सुबह की सैर पर साथ पार्क का चक्कर लगाने वाले, चाय की थड़ी पर अखबार हाथ में लिए गप-शप करने वाले इन बुजुर्गों को मॉर्निंग वॉक का रुटीन छूट जाने का भी दुख है। सर्वे में शामिल 72 फीसदी बुजुर्गों ने कहा कि वे सुबह की सैर और अपने दोस्तों के साथ ठहाके लगाने को बहुत मिस कर रहे हैं। जबकि करीब 14 फीसदी ने ही कहा कि वे थोड़ा-बहुत या बिल्कुल भी ऐसा महसूस नहीं कर रहे।

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पूजा-पाठ और गार्डनिंग में रमा रहे मन
लॉकडाउन में गर्मियों के इन लंबे दिनों को गुजारना भी किसी चुनौती से कम नहीं। ऐसे में बुजुर्ग खुद को अध्यात्म और प्रोडक्टिव कामों में व्यस्त रख रहे हैं। बच्चों को पढ़ाना, घर के छोट-मोटे कामों में हाथ बंटाना, पूजा-पाठ और गार्डनिंग के जरिए लॉकडाउन में खुद को व्यस्त रखने वाले 64.56 फीसदी बुजुर्ग हैं। करीब 23 फीसदी ने सेहत और उम्र का हवाला देते हुए कहा कि वे थोड़ा बहुत ऐसा कर लेते हैं जबकि 12.66 फीसदी ने कहा कि वे ऐसा कुछ नहीं करते।

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जनरेशन जेड से कर ली दोस्ती
लॉकडाउन में सबसे ज्यादा पाबंदियां और सावधानी बरतने की सलाह भी बुजुर्गों को ही दी गईं। ऐसे में कोरोना वायरस के बारे में जानना हो या सरकार की नई घोषणाओं के बारे में समझना हो, खेल-कूद हो या ऑनलाइन पुराने धारावाहिक देखने हों , पुरानी पीढ़ी ने आज की जनरेशन जेड यानी अपने नाती-पोतों से ही दोस्ती कर ली। सर्वे में 75 फीसदी से ज्यादा बुजुर्गों ने कहा कि उनके घर के बच्चों ने उनका इस लॉकडाउन में खूब साथ दिया और दो पीढिय़ों के बीच रिश्ते पहले से ज्यादा मजबूत हुए हैं। वहीं 12 फीसदी ऐसे भी थे जो लॉकडाउन का उपयोग नई पीढ़ी से रिश्ते मजबूत करने में उतनी बेहतर तरीके से नहीं कर सके। हालांकि एक अन्य सवाल के जवाब में 83.54 फीसदी बुजुर्गों ने यह भी स्वीकारा कि उन्हें लॉकडाउन में बच्चों का साथ बहुत पंसद आ रहा है।

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फिर खुला किस्से-कहानियों का पिटारा
पूरा परिवार एकसाथ इतने लंबे समय के लिए पहली बार साथ था। ऐसे में लॉकडाउन ने किस्से-कहानियों के उस दौर को फिर से जिंदा कर दिया जो सोशल मीडिया और इंटरनेट से पहले बच्चों को सुलाने वाली जादू की पुडिय़ा और सांस्कृतिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का जरिया था। सर्वे में सामने आया कि समय बिताने के लिए 72.15 फीसदी बुजुर्ग अपने गुजरे दौर के किस्से, घटनाएं, यादों और कहानियों के झरोखों से आज की पीढ़ी को रुबरु करवा रहे हैं। सेहत और ढलती उम्र के चलते 16.46 फीसदी बुजुर्ग कभी-कभी ऐसा कर रहे हैं जबकि 11.39 फीसदी ने कहा कि वे ऐसा नहीं करते। वहीं लगभग 60 फीसदी ने कहा कि वे सेहत का खयाल रखते हुए इन दिनों अलॉर्म लगाकर समय से अपनी जरूरी दवाएं ले रहे हैं। 26.58 फीसदी ही ऐसा नहीं कर रहे।

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तनाव से बचने का भी कर रहे उपाय
बुजुर्गों की दिनचर्या में बदलाव या रुकावट आए तो उन्हें असहजता के चलते थकान और तनाव भी महसूस होने लगता है। 50 दिनों से घर से बाहर न निकल पाने के कारण बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ा है। चिकित्सकों की सलाह पर ऐसे 48 फीसदी बुजुर्गों ने बागबानी करनी शुरू कर दी है। हालांकि करीब 35 फीसदी बुजुर्ग खुद को दूसरे तरीकोंसे भी व्यस्त रख रहे हैं। वहीं लगभग 76 फीसदी ने कहा कि वे खुश रहने के लिए अपने निकट संबंधियों से वीडियो कॉल से जुड़े रहते हैं। करीब 61 फीसदी बुजुर्गों ने कहा कि वे अपनी पुरानी चीजों और सामानों की सार-संभाल में समय बिताते हैं। वहीं करीब 21 फीसदी इससे इत्तेफाक नहीं रखते।

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लॉकडाउन खुला तो जाएंगे तीर्थयात्रा
सर्वे में जब इन बुजुर्गों से पूछा गया कि लॉकडाउन खुलने पर सबसे पहला काम वे क्या करेंगे तो 33.54 फीसदी बुजुर्गों ने जवाब दिया कि वे तार्थयात्रा पर जाकर भगवान के दर्शन करेंगे। जबकि 36 फीसदी बुजुर्गों ने कहा कि उन्होंने अभी इस बारे में कोई योजना नहीं बनाई है। 30 फीसदी ने कहीं भी बाहर जाने से मना कर दिया।

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Click Health and Recipies to go back. May 15, 2020 at 11:29AM

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